सावन का पावन मास

सावन का पवित्र महिना शुरू हो गया है | शिव जी की पूजा आराधना से वातावरण गूँज रहा है | चारों ओर  भक्तिमय माहॉल  बना हुआ हैं |  परन्तु  सावन  मास  2020 कुछ अलग ही  है |  कोरोना नाम के विषाणु ने जहाँ पुरे विश्व में तबाही मचा रखी हैं, वहीं ये विषाणु सावन मास को सूना कर रहा हैं |  मंदिरों में भी लोग कम नजर आ रहे हैं, जबकि इस मास के आगमन मात्र से भक्तों की भीड़ उमर जाती थी भगवान शिव के दर्शन के लिए |   
                                                             
      

मुद्दा ये हैं कि क्या मंदिर जाना ही जरूरी हैं ?     

 मात्र सावन  मास में ही भक्ति करनी चाहिए ?   

क्या हमारा घर मंदिर नहीं ?     

जहाँ तक मंदिर जाने की बात हैं, आप जरूर जायें |  देवी-देवता के दर्शन करें |  मंदिर में एक अलग तरह की शांति मिलती हैं | मगर जैसा कि वर्णित हैं, सावन मास 2020 कुछ अलग हैं, जहाँ एक विषाणु ने वातावरण पे कब्जा कर लिया हैं कि लोगों की जान पे आ गई हैं |  वहाँ मंदिर जाना ही जरूरी हैं ?    
  नहीं |      

आपका ह्रदय ही मंदिर हैं | समस्त देवी-देवता हमारे हृदय में वास करते हैं |  फिर कहीं जाने कि क्या जरूरत |  आप घर में रह कर अपने अर्ध्य की पूजन कर सकते हैं |  हमारे हृदय में भगवान का वास होता हैं |  इसलिये सर्वप्रथम आप अपना ख्याल रखें | जिससे आपका ह्रदय   सुरक्षित  रहें |  चूँकि इंसान भगवान का ही संतान हैं |  भगवान सदैव चाहेंगे उनका संतान सुरक्षित  रहें |  संतान सुरक्षा  की भावना सर्वोपरि होती हैं, इस बात से कौन अवगत नहीं | कृप्या खुद को  सुरक्षित  रखें, भगवान को खुश रखें |      
                                                                  

क्या मात्र सावन में ही पूजा तथा भक्ति करनी चाहिए ?       

भक्ति का सही उद्देश्य सेवा भाव होता हैं |  क्या सेवा बस सावन मास में ही होनी चाहिये |  नहीं |      
सेवा भाव हर पल बनी रहनी चाहिए |  यद्यपि सावन मास में भगवान की विशेष उपसना होती हैं तथापि हमें भक्ति मानव हित में करनी चाहिए |    
आप पूजा जरूर करें परन्तु कुछ बातों का ध्यान रखें | 
अकसर शिव भक्त दूध चढ़ाते हैं |  क्यों ना दो बूंद दूध के अभिषेक के बाद बाकी जरूरतमंद को दे दिया जायें |  लोग पुष्प से भगवान की आराधना करते हैं | क्यों ना 10 पुष्प कि जगह 2 पुष्प ही चढ़ाये बाकी पेड़ से ना तोड़े |     

क्या प्रकृति की रक्षा हमारा कर्त्तव्य नहीं, क्या प्रकृति की सेवा हमारी  भक्ति नहीं ?    

मुझे बचपन की एक बात याद आती हैं, 2 फूल तोड़ने के बाद मेरे पिताजी  सदैव मुझ से कहा करते थे और फूल मत तोड़ो |  पेड़ को भी तो फूल चाहिए, हमें मिल जुल के रहना चाहिए | अगर सारा फूल तोड़ लिया जायें तो पेड़ दुखी हो जायेंगे | बचपन से ही मेरे हृदय में एक करुणा का आभास हुआ, जो आज तक हैं |  कितना आसान तरीका था उनका मुझे प्रकृति से जोड़ने का तथा प्रकृति कि महत्व समझने का |  मेरे पिता जी ने प्रकृति कि रक्षा कर अपनी  भक्ति निभाई |  माता पिता संतान के पहले विद्यालय होते हैं | क्यों ना बचपन से ही बातों ही बातों में प्रकृति से जोड़ दिया जायें  |      

प्रकृति कितनी खूबसूरत हैं |  हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए | सोचिये जरा अगर पेड़ में फूल नहीं, आकाश में बादल नहीं, नदी में पानी नहीं और खेतों में अनाज नहीं हो तो हमारा जीवन कैसा होगा |       
भगवान भी तभी खुश  होंगे जब आप प्रकृति प्रेमी होंगे  |  यकीन करें, शिव जी को फूल से लदी माला से अधिक आपकी करुणा पसन्द आयेगी |  दूध की नदी से अधिक आपकी दया भावना पसन्द आयेगी |   

आप भक्ति जरूर करें, पर एक बार ऊपर लिखे बातों पर भी सोचें |  जरा सोचें जन हित के लिए जहर पी लेने वाले नीलकंठ महादेव को आपकी किस प्रकार की भक्ति पसन्द आयेगी |  जन हित में किये गये कार्य या दूध तथा पुष्प की धारा |    

हर माह भक्ति का हैं | हर दिन सेवा का हैं |  अगर आप मदद की भावना रखते हैं तो पूजा-पाथ की क्या जरूरत |  
हर मनुष्य भगवान का ही सृजन हैं | अगर हम सेवा भाव से उनके सृजन की रक्षा करें | भगवान यूँ ही खुश होंगे, आशीर्वाद देंगे |  
प्रकृति में रहें   प्रकृति में  जियें     प्रकृति से प्यार करें |       
 क्या घर ही मन्दिर नहीं ? 
   मन्दिर में ऐसी क्या विशेषता हैं  कि लोगों की भीड़ उमड़ी  रहती हैं  यहाँ ?   
मन्दिर में पवित्रता होती हैं, शान्ति होती हैं |  समस्त  देवता का वास होता हैं |  मन्दिर में  भक्ति की अनुभूति   होती हैं |      

मगर क्यों?      

क्यों कि मन्दिर में हम निःस्वार्थ भावना से जाते हैं |  अपने आराध्य की सेवा करते हैं, जिसे  हम प्रेम करते हैं | हमें यकीन होता हैं कि भगवान हमारे हित में हमें आशीर्वाद देंगे |   

अगर देखा जाये तो हमारा घर ही मन्दिर हैं | अगर नहीं तो हम कैसे बनायें अपने घर को मन्दिर ?    
हम भगवान पर विश्वास करते हैं |    
एक बार अपने परिजनों पर विश्वास करके देखें, उनकी सेवा निःस्वार्थ भाव से करें, उनसे प्रेम करें |    
परिणाम यह होगा कि घर में शांति ही शांति  होगी |       
सेवामय माहौल होगा |  बन गया आपका घर मन्दिर |      

माता-पिता की सेवा सर्वोपरि माना गया हैं |  आप उनका आशीर्वाद ले तथा भगवान को याद करें |     
 इस लेख का यह उदेश्य यह नहीं कि लोग मन्दिर ना जाये, लोग पूजा ना करें, बल्कि उदेश्य हैं  घर को ही मन्दिर  बनाने की |     
हम कुछ समय के लिए मन्दिर जाते हैं, शांति की प्राप्ति में |  परिवारजनों में प्रेम बढ़ाने का उद्देश्य बहुत बड़ा हैं |    
घर ही मन्दिर बन जाए तो किसी वृद्धा आश्रम में कोई वृद्ध नहीं रहेंगे बल्कि वो रहेंगे घर की देवता बनकर |   शांति ही शांति रहेगी घर में तथा खुशनुमा होगा माहौल |   
  
सावन में शिव की आराधना जरूर करें | भक्ति से प्रेम पनपता हैं, और प्रेम से पनपता हैं शांति | किन्तु यह लेख भी अपनेआप में एक बहुत अनोखी सन्देश दे रहा हैं | कृप्या पूरा पढ़े तथा सोचें, मनन करें, क्या भक्ति इस प्रकार से नहीं होनी चाहिए ?   
   

भगवान  शिव का  आशीर्वाद  आप सब पे बना रहें |  सावन मास आप सब के लिए सुखमय हो |   स्वस्थ्य रहें ,  सुरक्षित रहें    खुश  रहें | 


सावन का पावन मास आप सब के लिए शुभ हो |  हार्दिक शुभकामना | 
   


20 Comments

  1. बहुत सुंदर(राज)

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  2. बहुत सुन्दर👌👌👌

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  3. Wonderful blog...Har Har Mahadev... keep it up...

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  4. अति सुन्दर...

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  5. Good information but some mistakes to understand.

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  6. Wow! Amazing blog bhabhi..keep it up..हर हर महादेव 🙏🙏🙏

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  7. अति सुंदर विश्लेषण।👌👌

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