माता शैलपुत्री - नवरात्रि का प्रथम दिन ।

माता शैलपुत्री - नवरात्रि का प्रथम दिन। 

नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ( माता शैलपुत्री ) 

नवरात्री का आगमन हो चुका है। दसों दिशाएँ भक्तिमय हो गया है मन में आनंद की अनुभूति हो रही है। आइये इस शुभ अवसर पे माता रानी को नमन करे तथा धन्यवाद दे उन्हें उनकी उपस्थिति हेतु। आज नवरात्री का प्रथम पूजा है। आज हम माता शैलपुत्री की पूजा करते है। यूँ तो माता के जाने कितने रूप हैं। हर जगह माता विद्यावान हैं तथा उनकी कृपा से ही हम जन जीवन जी रहे है परन्तु नवरात्री के शुभ अवसर पे हम माता के 9 रूप की आराधना करते है। इसी क्रम में पहले दिवस में हम माता शैलपुत्री की पूजा करते हैं।    



माँ दुर्गा के इस रूप को जिसे हम शैलपुत्री कहते है, नवरात्री के प्रथम दिन उन्हें पूजा जाता है। हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। उनका वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।  इस देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल है तथा बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। इन्हें सती के नाम से भी जाना जाता है।     

आराधना मंत्र  



हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और प्रकृति के रूप में प्रशिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ।   


कथा 
एक बार राजा प्रजापति ने यज्ञ करने की ठानी जिसमें उन्होंने सबको निमंत्रण भेजा परन्तु भगवान शिव को नहीं बुलाया।  देवी सती जो राजा प्रजापति की पुत्री थी तथा भगवान शिव की पत्नी थी, उन्हें इस यज्ञ में जाने की बड़ी इच्छा हुए परन्तु भगवान शिव ने उन्हें माना कर दिया तथा कहा की हमे नहीं बुलाया गया है।   
परन्तु सती की प्रबल इच्छा देख कर भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी परन्तु आप नहीं गए। सती जब अपने घर पहुंची तो उन्हें अपनी माँ का स्नेह मिला परन्तु पिता ने उन्हें भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें कही तो सती को बहुत दुख हुआ तथा जब उन्हें अपने पति का अपमान सहन नहीं हुआ तो उन्होंने हवन कुण्ड की अग्नि में आपनेआप को भस्म कर लिया। इस दुख में भगवन शिव बहुत व्यथित हुए तथा उन्होंने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया। 
यही सती अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में हिमालय के घर जन्म लिया तथा उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। उनका महत्व तथा शक्ति अनंत है।    



पूजा विधि   

माँ शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें, लाल पुष्प से माता की पूजा करें। माता को सिंदूर, धुप , चावल अर्पित करें। इसके बाद माता के मंत्र का उच्चारण करें। माता के मंत्र का 108 उच्चारण करें।  फिर अंत में कपूर या घी से दीपक जला कर उनकी आरती करें तथा माता का नमन करें।   

रंग: लाल 

मंत्र   





तथा अंत में माता से अपनी कृपा बनायें रखने का आशीर्वाद मांगे।    

दुर्गा की प्रथम रूप तू माता शैलपुत्री कहलाई, ममतामई ये सूरत तेरी माता हम सबको भायें।           

माँ शैलपुत्री शक्ति स्वरूपा हैं। वो माता दुर्गा की अवतार हैं। नवरात्रि के शुभ अवसर पर आज मातेशवरी से यही प्रार्थना है, हे ममतामई अपनी कृपा हम सब पर बना के रखना। नारी की पहचान माता दुर्गा ही हैं। परन्तु नारी को हर कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आप के एक हाथ में कमल तथा दूसरे हाथ में त्रिशूल है। हे माता आप जगजननी हैं। स्त्री को भी इतनी शक्ति प्रदान करें कि जब तक हो सके फूल की कोमलता बनाये रखे किन्तु जब समय ऐसा आये जहां त्रिशूल उठाना पड़े तो स्त्री न डरे न घबरायें।  

आप ऐसा आशीर्वाद देना कि श्री को शक्ति स्वरूपा समझा जाये तथा उनका सम्मान हर जगह बरकार रहे। मातेश्री आपको सत सत बार नमन।   





हे माता, हे शक्ति श्वरूपा, हे ममतामई, हे शैलपुत्री माता। आप की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे। हमारी बस यही कामना है माता। आप सब को शुभ नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।      



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