माता ब्रह्मचारिणी - नवरात्रि का दूसरा दिन।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें(माता ब्रह्मचारणी )
नवरात्रि का आगमन हो चुका है। दसों दिशाएँ भक्तिमय हो गयी है। मन में आनंद की अनुभूति हो रही है। आइये इस शुभ अवसर पे माता रानी को नमन करे तथा धन्यवाद दे उन्हें उनकी उपस्थिति हेतु। आज नवरात्री की दूसरा पूजा है। आज माता ब्रह्मचारणी की पूजा करते है। यूँ तो माता के जाने कितने रूप हैं। हर जगह माता विद्यावान हैं तथा उनकी कृपा से ही हम जन जीवन जी रहे है परन्तु नवरात्री के शुभ अवसर पे हम माता के 9 रूप की आराधना करते है। इसी क्रम में दूसरे दिवस में हम माता ब्रह्मचारणी की पूजा करते हैं।
माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में दूसरी शक्ति देवी ब्रह्मचारणी हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या तथा चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। यह देवी तप में लीन हैं। मुख पे कठोर तपस्या का तेज तथा कांति का संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में माला है और बायें हाथ में कमंडल है। माता तपस्या की मूर्तिमान हैं। माता के अन्य नाम भी है जैसे उमा, अपर्णा।
बीज मंत्र
आराधना मंत्र
हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रशिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार बार प्रणाम है। मैं आपको बारम्बार नमन करता हूँ।
रंग: पीला
माता ब्रह्मचारिणी - नवरात्रि का दूसरा दिन।
पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। उनकी पूजा फूल, अक्षत, रोली, चन्दन, से करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथ में फूल लेकर प्रार्थना करें। माता को लाल फूल बहुत पसंद है। अपने पूजा सामिग्री में लाल फूल शामिल करें। कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें। देवी को कुछ प्रसाद अर्पित करें। अंत में घी कपूर से आरती करें तथा अंत में पूजन में हो गयी किसी भूल के लिए माफ़ी माँगे।
कथा
माता ब्रह्मचारिणी की कथा इस प्रकार है। देवी ने हिमालय के घर जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। एक हजार वर्ष तक उन्होंने केवल फल फूल खा कर बिताये और केवल जमीन पर रहकर समय बिताये। बहुत दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा, धुप के कष्ट सहे। तीन हजार वर्षो तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाये और भगवान शिव की अराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार वर्ष तक निर्जल तपस्या करती रहीं।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, मुनि सभी ने माता की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य बताया, सराहना की तथा कहा- हे देवी आजतक किसी ने ऐसा घोर तप नहीं किया। तुम्हरी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होगी। इस तपस्या को सार्थक करने की वजह से माता का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
ब्रह्मचारिणी माता का यही रूप कठोर परिक्षम की सीख देता है कि किसी चीज को पाने के लिए कठोर तप करना चाहिए।
माता के इस रूप की पूजा करने से मन शांत रहता है तथा मनोकामनाएं पूरी होती है।
माता ब्रह्मचारिणी के कठोर तप से हमे सीख मिलता है कि मन में अगर ठान लिया जाये तो किसी चीज को भी प्राप्त किया जा सकता है। कठोर साधना ही मात्र मंजिल पाने का एक मात्र रास्ता है। माता ने अपने व्यक्तित्व द्वारा हमें यह सीख दी है।
माता ब्रह्मचारिणी की कृपा आप सबपे बनी रहे तथा मातेशवरी आप को अपनी मंजिल प्राप्त करने के लिए तप करने का आशीर्वाद दे। नवरात्रि के शुभ अवसर पर माता ब्रह्मचारिणी को सत सत बार नमन।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
4 Comments
Jai Mata Di...
ReplyDeleteJai Mata Di🙏🙏🙏(Raj)
ReplyDeleteJai mata Di,,,
ReplyDeleteJai mata rani
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